भंथे अमेरिका कता हो कता
यहाँ आई बस्ता, परेछु रनभुल्लमा मत
स्वदेशका पहाड़ पर्वत लहरिएका झरना हरु
उकाली ओराली गर्दा सुस्केरायका खोलानालाहरू
सुनथें अमेरिका डलर कता हो कता
भंथे डलरको लहड़ संगे डुबिन्छ यता
स्वदेश का छर छिमेकी घर गाउले का माया ममताहरू
बिर्सिदै गयेछ्न देवी देवता अनि ति पवित्र मठमन्दिर हरु
कुरा गर्थे अमेरिका कता हो कता
विर्सिने पो हो कि स्वदेश का ति अमूल्य गाथा
स्वदेश का रीती रिवाज ति अमूल्य सस्कारहरू
हराउने पो हुन कि यहाको लहड़ संग आफ्ना संतान हरु
सुन्थे अमेरिका कता हो कता
खाने बसने समय को ठेगान छैन येता
फुर्सत छैन संधै यहाँ डलर को लहड़ संधै
हराउने पो हो की संतान हरु यहाँ को लहड़ संगै
भंथे अमेरिका कता हो कता
हराउने पो हो की डलर को लहड़ संगै यता
रचनाकार : Prem Pandey
ऑस्टिन टैक्सस
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